ज्योतिष शास्त्र का परिचय

ज्योतिष शास्त्र का परिचय


'ज्योतिष 'शब्द 'ज्योति' से बना है। 'ज्योति का शाब्दिक अर्थ'-:प्रकाश,उजाला,रोशनी,आभा,द्युति आदि हैं। 


ज्योतिष शब्द का सन्धि-विच्छेद ज्योत+ईश होता हैं।जिसका अर्थ ईश्वर की रोशनी हैं अर्थात ईश्वर के द्वारा अंधेरे से उजाला की ओर ले जाने का मार्गदर्शन होता हैं।


आकाश मंडल के ग्रह एवं नक्षत्र ज्योति प्रदान करते हैं मेष,वृषभ,मिथुन, सिंह, तुला, मकर, मीन आदि आकार  वाले  तारक समूह को ज्योतिष में राशियों की संज्ञा दी गई है, यह हमें ज्योति प्रदान करते हैं। धूम्रकेतु ,उल्काएं आदि भी ज्योति प्रदान करते हैं। जन्म के समय 'ज्योति रश्मियां' ही व्यक्ति के स्वभाव का निर्माण करती हैं।


'ज्योतिष विज्ञान -: आकाशीय पिण्डों से निकलने वाली ज्योति रश्मियां स्वयं के बल एवं कोणात्मक दूरी या अन्तर के अनुसार व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रभावित करती हैं। 'ज्योति रश्मियों के प्रभाव का अध्ययन करने वाले विषय को ही 'ज्योतिष विज्ञान' या 'ज्योतिर्विज्ञान कहते हैं।


ज्योतिष के अंग -: आदिकाल की समाप्ति तक ज्योतिष के तीन अंग थे आधुनिक में इसमें दो अंग जोड़े गये हैं।इस प्रकार ज्योतिष के पाँच अंग बन गये हैं।जो निम्नानुसार हैं:


1.सिद्धान्त ज्योतिष -: ज्योतिष विद्या पूर्णतया शुद्ध गणितीय आकलन व परिमाप पर आधारित है। अतः किसी भी व्यक्ति के जन्म के समय या किसी घटना के समय आकाश मंडल के ग्रह, नक्षत्र किस गति,स्थिति पर है तथा उनके उदय,अस्त एवं वक्री होने का व्यक्ति या घटना पर क्या प्रभाव होता है,? इसी गणित के ,सिद्धांत, ज्योतिष कहते हैं।


प्राचीन काल में अट्ठारह सिद्धांत सूर्य सिद्धांत, पितामह सिद्धांत, व्यास सिद्धांत, वशिष्ठ सिद्धांत, लोमश सिद्धांत, पौलिश सिद्धांत, भृगु सिद्धांत,शौनक सिद्धांत आदि प्रचलित थे।


2.सहिंता ज्योतिष -: इसमें  उन  सभी  विषयों  को  शामिल  किया  गया  हैं,  जिनका  किसी  व्यक्ति  राष्ट्र   या समूचे  विश्व पर प्रभाव पड़ता है यथा-भूशोधन,दिकशोधन,गृहारम्भ,जलाशय निर्माण,  वर्षारंभ,  भूकंप आना, ज्वालामुखी फूट पड़ना,अकाल पड़ना,ग्रहण पड़ना, महामारी होना आदि। इसे'संहिता ज्योतिष'  या  'सांसारिक फ़लित ज्योतिष'  भी  कहा जाता है।


प्राचीन पुस्तकों में रावण संहिता,सूर्य संहिता,इंद्र संहिता,  रुद्र संहिता,वराह संहिता,पुलस्य संहिता,जैमिनी संहिता,भृगु संहिता आदि के प्रमुख नाम ही शेष रह गए हैं। 


3.होरा ज्योतिष या जातक शास्त्र -: होरा 'अहोरात्र'शब्द से  बना है। यदि अहोरात्र के आदि का 'अ' तथा  अंत  का  'त्र'अक्षर  लोप  कर दें  तो  'होरा'  शब्द  शेष   रह जाता है।  ऐसा माना जाता है कि अंग्रेजी शब्द Hour (घंटा) होरा से ही निकला है।  इसलिये  जैसे एक अहोरात्र या दिन रात  में  24  होरा  होती हैं, उसी प्रकार एक दिनरात 24 घंटे की होती हैं।


इस शास्त्र द्वारा  व्यक्ति  के  जन्म कालीन  ग्रहों  की  स्थिति  के अनुसार शुभाशुभ फल निरूपित किया जाता है।  जीवन के  सुख-दुख:,इष्ट-अनिष्ट,उन्नति-अवनति, भाग्योदय  आदि का वर्णन इस शास्त्र के विषय हैं।  इस प्रकार इसका सम्बन्ध फलित ज्योतिष  है। 


4.प्रश्न शास्त्र ज्योतिष -: यह शास्त्र तात्कालिक फल कहने वाला शास्त्र हैं। प्रश्नकर्ता द्वारा पूछे गये प्रश्न का उत्तर या फल प्रश्नाक्षरों या प्रश्न करने के समय को आधार मानकर प्रतिपादित किया जाता है। इस संबंध में प्रश्नाक्षर सिद्धांत ,प्रश्न लग्न सिद्धांत एवं स्वरज्ञान सिद्धांत का जन्म हुआ है।  


5.'शकुन शास्त्र ज्योतिष' या 'निर्मित शास्त्र' -: सर्वप्रथम इसमें अरिष्ट विषय ही शामिल किये गये थे। कालांतर में इसकी विषय सीमा में प्रत्येक कार्य के प्रारम्भ पूर्व शुभाशुभ तथ्यों तथा घटनाओं का ज्ञान प्राप्त करना भी आ गया। बसंतराज शकुन अद्भुत सागर जैसे शकुन गर्न्थो की रचना हुई।यही कारण हैं की आधुनिक समय में सभी कार्य शुभ मुहूर्त देखकर ही प्रारम्भ किए जाते हैं।


ज्योतिष का महत्व एवं उपयोगिता -: निम्नानुसार हैं


●मनुष्य के समस्त कार्य ज्योतिष के द्वारा ही चलते हैं। 


●व्यवहार में अत्यंत महत्वपूर्ण एवं उपयोगी दिवस, समय, तिथि,वार, सप्ताह, पक्ष,मास, ऋतु, वर्ष, अयन, गोल,, नक्षत्र, योग, करण, चंद्र संचार, सूर्य स्थिति आदि का ज्ञान ज्योतिष से ही होता है।


● और इस जानकारी के लिये प्रतिवर्ष अनेकानेक स्थान और नाम आधारित पंचांग बनाये जाते हैं। इसमें धार्मिक उत्सव दिवस, सामाजिक त्यौहारों के दिवस, महापुरुषों के जन्म दिवस, राष्ट्रीय पर्व दिवस, महत्वपूर्ण घटनाओं के दिवस एवं उनके उपयुक्त समय दिये  होते हैं। साधारण मनुष्य भी सुनकर या पढ़कर उन्हें समय पर मना सकते हैं।


●इसी प्रकार बहुत सी ऐतिहासिक तिथियों का भी पता लग जाता है। उन पर भी हम मिल बैठकर विचार कर सकते हैं और अपने सुझाव दे सकते हैं तथा सही निर्णय ले सकते हैं। 


● जलचर राशि या जलचर नक्षत्रों में अच्छी वर्षा के आसार होते हैं। 


●अनपढ़ देहाती किसान आकाश मंडल की स्थिति देखकर इसका आसानी से अनुमान लगा लेता है, फसल बोने का समय भांप लेते है, ताकि अच्छी पैदावार हो।


● समुंद्री जहाज के कप्तान भी समुंद्री यात्रा के दौरान सूर्य, चंद्र की गति, स्थिति देखकर समुंद्री मौसम का अनुमान या अंदाज लगा लेते हैं और ठीक समय पर समुचित एवं निरापद मार्ग का अनुसरण करते हैं, इससे हानी की संभावना समाप्त हो जाती है ।


●ज्योतिष की शाखा रेखा गणित से पर्वतों ऊंचाई एवं समुंद्र समुद्रों की गहराई मापी जा सकती हैं।


● सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण के आधार पर प्राचीनतम  ऐतिहासिक तिथियों की जानकारी हो जाती हैं।


●भूगर्भ से प्राप्त पुरातत्व की वस्तुओं के समय व उनकी आयु का पता भी लग जाता है।


●अक्षांश एवं रेखांश रेखाये दिशा ज्ञान कराती हैं, इस दिशा ज्ञान के आधार पर विश्व के किसी भी भूभाग या स्थान पर पहुंचना सरल और सुविधाजनक हो जाता है।

 

● सृष्टि के अनेकानेक रहस्य यथा योगों की जानकारी सूर्य ग्रहण व चंद्रग्रहण तिथि व समय, ज्वार भाटा की तीव्रता का ठीक समय आदि ज्योतिष द्वारा जान लेते हैं।


● गुणकारी दवाइयों के बनाने के स्थान व समय का ज्ञान हो जाता है,रोगों के उपचार हेतु रोगों समयानुसार उचित दवाई देने से अवगत होते हैं।


● विभिन्न प्रकार के शुभ मुहूर्तों का ज्ञान होता है। इस प्रकार ज्योतिष विज्ञान प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से हम पृथ्वीवाशी मनुष्यों, जीवधारी पशुओं, पक्षियों और जड़ वस्तुओं के लिए सर्वथा उपयोगी एवं लाभकारी हैं।


● अज्ञानता के अंधकार को हटाने वाला 'ज्योति दीप' हैं दूसरे शब्दों में 'ज्योति र्विज्ञान' हैं।