बृहस्पति ग्रह के बारे में जानकारी

१. बृहस्पति का स्वरूप एवम प्रकृति :-

पुराणों के अनुसार बृहस्पति पीत वर्ण के ,चतुर्भुज ,रुद्राक्ष की माला – कमंडल व वरमुद्रा धारण करने वाले हैं| मत्स्य व स्कन्द पुराण में बृहस्पति को बृहत्काय,शांत,जिते- न्द्रिय,बुद्धिमान,- विद्वान मधुर वाणी से युक्त ,नीति कुशल,वेदों के ज्ञाता गुणवान,रूपवान,एवम निर्मल अंतःकरण के कहा गया है |

विभिन्न राशियों में स्थित गुरु ग्रह का फल :- गुरु के द्वादश राशियों में फल शास्त्रों में निम्नानुसार बताए गए हैं

मेष राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु मेष राशि में स्थित हो,तो जातक उग्र स्वभाव वाला, बलशाली, धनवान, विद्वान, प्रचुर संतान वाला, उदार, नम्रता से बोलने वाला, परंतु अपने आपको दूसरों से ऊंचा या बड़ा समझने वाला, सुखी विवाहित जीवन और उच्च पद पर आसीन होता है।

वृषभ राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु वृषभ राशि में स्थित हो,तो जातक विद्वान, जीवन में स्थिरता वाला,ढृृृढ़ विचार वाला,दिखावा करने वाला,योग्य,  कामक्रीड़ा में आतुुुर, हस्तमैथुन की ओर झुकाव वाला होता है।

मिथुन राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु मिथुन राशि में स्थित हो,तो जातक योग्य वक्ता,लंबे कद वाला, सुगठित शरीर वाला, उदार, विद्वान और कई भाषाओं को जानने वाला होता है।

कर्क राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु कर्क राशि में स्थित हो ,तो जातक विद्वान, राजकीय से सेवा सम्मानित, राजा के समान जीवन जीने वाला, धनवान, कुशाग्र बुद्धि वाला और वफादार मंत्री या महात्मा होता है।

सिंह राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु सिंह राशि में स्थित हो,तो जातक  आकर्षक व्यक्तित्व वाला, औसत कद वाला, उच्चाकांक्षी,सक्रिय, सुखी, कुशाग्र बुद्धि वाला, साहित्य की ओर झुकाव वाला, लेखक और उच्च सरकारी पद पर आसीन होता है।

कन्या राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु कन्या राशि में स्थित हो,तो जातक उच्चाकांक्षी,स्वार्थी, भाग्यवान, कंजूस, विद्वान और संतोषी स्वभाव का होता है।

तुला राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु तुला राशि में स्थित हो,तो जातक सुंदर, उदार, बलवान, योग्य, धार्मिक प्रवृत्ति वाला और निष्पक्ष स्वभाव का होता है।

वृश्चिक राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु वृश्चिक राशि में स्थित हो,तो जातक भले आचरण का, सुगठित शरीर वाला, अपनी उच्चता का दिखावा करने वाला, स्वार्थी, कमजोर शरीर वाला, कामक्रीड़ा में रुचि वाला एवं दु:खी होता है।

धनु राशि :- यह जन्म कुंडली में गुरु धनु राशि में स्थित हो,तो जातक धनवान, विद्वान, प्रभावशाली,सज्जन, विश्वासपात्र, दानशील, संगठनकर्ता और अच्छा वक्ता होता है।

मकर राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु मकर राशि में स्थित हो, तो जातक असभ्य आचरण वाला, दु:खी, ईष्या करने वाला और अनियमित स्वभाव वाला होता है। 

कुम्भ राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु कुंभ राशि में स्थित हो, तो जातक विद्वान, परंतु धनहीन, लोकप्रिय, मिलनसार, स्वपनों के जगत में विचरण करने वाला और सन्यास की ओर झुकाव वाला होता है।

मीन राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु मीन राशि में स्थित हो, तो जातक विरासत में धन-संपत्ति प्राप्त करने वाला, मंझला कदवाला, साहसी और उच्च पद पर आसीन होता है। 

२. ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति का स्वरूप :-

फलदीपिका ,बृहज्जातक ,सर्वार्थ चिंतामणि ,जातका भरणम् इत्यादि ग्रंथों के अनुसार बृहस्पति , गौर वर्ण के , विशाल देह के ,कफ प्रधान ,उत्तम बुद्धि व गंभीर वाणी से युक्त,कपिल वर्ण के केश वाले ,बड़े पेट वाले , उदार ,पीत नेत्रों वाले हैं |

३. बृहस्पति का रथ एवम गति :-

पुराणों के अनुसार बृहस्पति का रथ स्वर्णिम है जिसमें पीत रंग के आठ दिव्य अश्व जुते हुए हैं | बृहस्पति लगभग एक वर्ष में एक राशि का भोग कर लेते हैं | राशि चक्र में धनु व मीन राशियों पर इनका अधिकार कहा गया है |

४. वैज्ञानिक परिचय :- 

बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है| यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह कई संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। यह चन्द्रमाऔर शुक्र के बाद तीसरा सबसे अधिक चमकदार ग्रह है बृहस्पति मुख्य रूप से गैसों और तरल पदार्थों से बना है। यह चारो गैसीय ग्रहों में बड़ा होने के साथ साथ1, 42, 984कि.मी .व्यास के साथ बड़ा ग्रह है। सौरमंडल में सूर्य के आकार के बाद बृहस्पति का ही नम्बर आता है। पृथ्वी से बहुत दूर स्थित इस ग्रह का व्यास लगभग डेढ़ लाख किलोमीटर और सूर्य से इसकी दूरी लगभग 778000000 किलोमीटर मानी गई है।

यह 13 कि.मी. प्रति सेकंड की रफ्तार से सूर्य के गिर्द 11 वर्ष में एक चक्कर लगा लेता है। यह अपनी धूरी पर 10 घंटे में ही घूम जाता है। लगभग 1300 धरतियों को इस पर रखा जा सकता है। जिस तरह सूर्य उदय और अस्त होता है, उसी तरह बृहस्पति जब भी अस्त होता है तो 30 दिन बाद पुन: उदित होता है। उदित होने के बाद 128 दिनों तक सीधे अपने पथ पर चलता है। सही रास्ते पर अर्थात मार्गी होने के बाद यह पुन: 128 दिनों तक परिक्रमा करता रहता है एवं इसके पश्चात्य पुन: अस्त हो जाता है। गुरुत्व शक्ति पृथ्वी से 318 गुना ज्यादा।

५. ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति :-

ज्योतिष शास्त्र में गुरु को सर्वाधिक शुभ ग्रह माना गया है |यह धनु और मीन राशियों का स्वामी है |यह कर्क राशि में उच्च का तथा मकर में नीच का माना जाता है | धनु इसकी मूल त्रिकोण राशि भी है |बृहस्पति अपने स्थान से पांचवें ,सातवें और नवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है और इसकी दृष्टि को परम शुभकारक कहा गया है |जनम कुंडली में गुरु दूसरे ,पांचवें ,नवें ,दसवें और ग्यारहवें भाव का कारक होता है

गुरु की सूर्य ,चन्द्र ,मंगल से मैत्री ,शनि से समता और बुध व शुक्र से शत्रुता है |यह स्व ,मूल त्रिकोण व उच्च,मित्र राशि –नवांश में ,गुरूवार में ,वर्गोत्तम नवमांश में,उत्तरायण में ,दिन और रात के मध्य में ,जन्मकुंडली के केन्द्र विशेषकर लग्न में बलवान व शुभकारक होता है |बृहस्पति को गुरु भी कहा जाता है I बृहस्पति ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है I यह पीले रंग का प्रतिनिधित्व करता है I जिन लोगों की कुंडली में गुरु का प्रभाव अधिक होता है वे अध्यापक, वकील, जज, पंडित, प्रकांड विद्वान् या ज्योतिषाचार्य हो सकते हैं I सोने का काम करने वाले सुनार, किताबों की दुकान, आयुर्वेदिक औषधालय, पुस्तकालय, प्रिंटिंग मशीन आदि पर गुरु का अधिकार होता है I गुरु एक नैसर्गिक शुभ ग्रह है तथा यह जहाँ भी बैठता है उस स्थान को पवित्र कर देता है I

सभी तीर्थस्थल इसी ग्रह के अंतर्गत आते हैं I पूर्ण रूप से ब्राह्मण धर्म का पालन करने वाले पंडित, न्यायपालिका के अंतर्गत आने वाले सर्वोच्च पद यानी न्यायाधीश, सरकारी वकील, साधू संतों में प्रमुख, कागज़ का व्यापार करने वाले व्यापारी तथा गजेटेड अधिकारी गुरु द्वारा ही संचालित होते हैं I

गुरु से प्रभावित व्यक्ति हृष्ट पुष्ट या थोड़े मोटे हो सकते हैं I इनका शरीर विशाल होता है I ये झूठ आसानी से नहीं बोल सकते अपितु बात को घुमा फिर कर बोलते हैं I इनका क्रोध पर पूर्ण नियंत्रण होता है I यह लोग तामसिक प्रवृत्ति के नहीं होते I इनका चरित्र तथा आचरण पवित्र तथा सहज होया है I ये झूठी प्रशंसा, दिखावे से दूर रहने वाले तथा धार्मिक कार्यों में रूचि रखने वाले होते हैं Iयही कारण है कि गुरु जिस ग्रह को देखेगा वह भी बलवान हो जाएगा I

पाप ग्रह के साथ होने पर वकील जो कि झूठ की राह पर ही चलता है, भ्रष्ट नेता, सोने का स्मगलर, रिश्वतखोर अधिकारी, तांत्रिक बना सकता है

६. फल देने का समय :-

गुरु अपना शुभाशुभ फल १६ से २२ एवम ४० वर्ष कि आयु में ,अपनी दशाओं व गोचर में प्रदान करता है | प्रौढ़ावस्था पर भी इस का अधिकार कहा गया है |

७. अशुभ के लक्षण :- 

सिर पर चोटी के स्थान से बाल उड़ जाते हैं। गले में व्यक्ति माला पहनने की आदत डाल लेता है। सोना खो जाए या चोरी हो जाए। बिना कारण शिक्षा रुक जाए। व्यक्ति के संबंध में व्यर्थ की अफवाहें उड़ाई जाती हैं। आँखों में तकलीफ होना, मकान और मशीनों की खराबी, अनावश्यक दुश्मन पैदा होना, धोखा होना, साँप के सपने। साँस या फेफड़े की बीमारी, गले में दर्द। 2, 5, 9, 12वें भाव में बृहस्पति के शत्रु ग्रह हों या शत्रु ग्रह उसके साथ हों तो बृहस्पति मंदा होता है।

८. शुभ के लक्षण :- 

व्यक्ति कभी झूठ नहीं बोलता। उनकी सच्चाई के लिए वह प्रसिद्ध होता है। आँखों में चमक और चेहरे पर तेज होता है। अपने ज्ञान के बल पर दुनिया को झुकाने की ताकत रखने वाले ऐसे व्यक्ति के प्रशंसक और हितैषी बहुत होते हैं। यदि बृहस्पति उसकी उच्च राशि के अलावा 2, 5, 9, 12 में हो तो शुभ।

९. बृहस्पति का राशि फल :-

मेष में – गुरु हो तो जातक तर्क वितर्क करने वाला , किसी से न दबने वाला ,सात्विक,धनी,कार्य क्षेत्र में विख्यात,क्षमाशील ,पुत्रवान,बलवान,प्तिभाशाली,तेजस्वी, शत्रु वाला,बहु व्ययी ,दंडनायक व तीक्ष्ण स्वभाव का होता है |

वृष में गुरु हो तो जातक वस्त्र अलंकार प्रेमी ,विशाल देह वाला ,देव –ब्राह्मण –गौ भक्त, प्रचारक ,सौभाग्यशाली,अपनी स्त्री में ही आसक्त ,सुन्दर कृषि व गौ धन युक्त, वैद्यक क्रिया में कुशल ,मनोहर वाणी-बुद्धि व गुणों से युक्त ,विनम्र तथा नीतिकुशल होता है

मिथुन में गुरु हो तो जातक ,विज्ञान विशारद ,बुद्धिमान,सुनयनी,सरल,निपुण, ,मान्य ,गुरुजनों व बंधुओं से सत्कृत होता है |

कर्क में गुरु हो तो जातक विद्वान,सुरूप देह युक्त ,ज्ञानवान ,धार्मिक, सत्य स्वभाव वाला,यशस्वी ,अन्न संग्रही ,कोषाध्यक्ष,स्थिर पुत्र वाला,संसार में पूज्य ,विशिष्ट कर्मा तथा मित्रों में आसक्त होता है |

सिंह में गुरु हो तो जातक स्थिर शत्रुता वाला ,धीर ,विद्वान,शिष्ट परिजनों से युक्त,राजा या उसके तुल्य,पुरुषार्थी,स- भा में लक्ष्य ,क्रोध से समस्त शत्रुओं को जीतने वाला ,सुदृढ़ शरीर का ,वन-पर्वत आदि के भ्रमण में रूचि रखने वाला होता है |

कन्या में गुरु हो तो जातक मेधावी, धार्मिक ,कार्यकुशल ,गंध –पुष्प-वस्त्र प्रेमी ,कार्यों में स्थिर, शास्त्रज्ञान व शिल्प कार्य से धनी दानी ,सुशील चतुर ,अनेक भाषाओं का ज्ञाता तथा धनी होता है |

तुला मे गुरु हो तो जातक मेधावी ,पुत्रवान,विदेश भ्रमण से धनी विनीत ,आभूषण प्रिय ,नृत्य व नाटक से धन संग्रह करने वाला ,सुन्दर ,अपने सह व्यापारियों में बड़ा,पंडित,देव अतिथि का पूजन करने वाला होता है |

वृश्चिक में गुरु हो तो जातक अधिक शास्त्रों में चतुर , क्षमाशील, नृपति, ग्रंथों का भाष्य करने वाला ,निपुण ,देव मंदिर व नगर में कार्य करने वाला , सद्स्त्रीवान,अल्प पुत्र वाला ,रोग से पीड़ित ,अधिक श्रम करने वाला ,क्रोधी, धर्म में पाखण्ड करने वाला व निंद्य आचरण वाला होता है |

धनु में गुरु हो तो जातक आचार्य ,स्थिर धनी ,दाता , मित्रों का शुभ करने वाला ,परोपकारी ,शास्त्र में तत्पर ,मंत्री या सचिव ,अनेक देशों का भ्रमण करने वाला तथा तीर्थ सेवन में रूचि रखने वाला होता है |

मकर में गुरु हो तो जातक अल्प बलि ,अधिक मेहनत करने वाला ,क्लेश धारक,नीच आचरण करने वाला ,मूर्ख ,निर्धन , दूसरों की नौकरी करने वाला , दया –धर्म –प्रेम –पवित्रता –स्व बन्धु व मंगल से रहित ,दुर्बल देह वाला ,डरपोक,प्रवासी,व विषाद युक्त होता है |

कुम्भ में गुरु हो तो जातक चुगलखोर ,असाधु ,निंद्य कार्यों में तत्पर ,नीच जन सेवी ,पापी,लोभी ,रोगी ,अपने वचनों के दोष से अपने धन का नाशक ,बुद्धिहीन व गुरु की स्त्री में आसक्त होता है |

मीन में गुरु हो तो जातक वेदार्थ शास्त्र वेत्ता ,मित्र व सज्जनों द्वारा पूजनीय ,राज मंत्री ,प्रशंसा प्राप्त करने वाला ,धनी ,निडर ,गर्वीला, स्थिर कार्यारम्भ करने वाला ,शांतिप्रिय ,विख्यात ,नीति व व्यवहार को जानने वाला होता है |

(गुरु पर किसी अन्य ग्रह कि युति या दृष्टि के प्रभाव से उपरोक्त राशि फल में परिवर्तन भी संभव है| )


१०. जन्मकालीन ग्रहों से बृहस्पति का गोचर :-

1. सूर्य :- जन्मकालीन सूर्य से जब बृहस्पति गोचर करते हैं तो शुभ अशुभ फल का निर्धारण इस आधार पर होगा कि बृहस्पति चन्द्र लग्न के स्वामी का मित्र है अथवा शत्रु। यदि चन्द्रमा लग्न का स्वामी बृहस्पति का मित्र होगा तो परिणाम शुभ होंगे यथा सम्मान, भभ, धन-धान्य की वृद्घि, सुख-समृद्घि आदि परन्तु यदि चन्द्र राशि के स्वामी और बृहस्पति शत्रु होंगे तो परिणाम अशुभ होंगे यथा ह्वदय रोग, हानि, उच्चा वर्ग का रोग, स्थान परिवर्तन आदि।

2. चन्द्रमा:- जन्मकालीन चन्द्रमा पर से बृहस्पति का गोचर शुभ-परिणाम नहीं देता है। यदि जन्मकालीन चन्द्रमा 2,3,6,7,10 अथवा 11 राशियों का स्वामी हो तो अशुभ परिणामों में वृद्घि होती है। धन हानि के कारण कर्ज बढ़ता है साथ ही व्यवसाय की वृद्घि भी रूक जाती है। मानसिक तनाव अधिक हो जाता है। जन्म स्थान से दूर जाना प़डता है।

3. मंगल:- जन्मकालीन मंगल से बृहस्पति का गोचर प्राय: शुभ-फल प्रदान करता है। इस स्थिति में आत्मविश्वास एवं उत्साह में वृद्घि होती है। उच्चाधिकारी प्रसन्न रहते हैं। विचारोे में सात्विकता आती है। कार्य के जोश में व्यक्ति स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखता जिस कारण स्वास्थ्य संबंधी खास तौर पर रक्त विकार की संभावना रहती है। भाईयों से भी विवाद होते रहते हैं।

4. बुध:- जन्मकालीन बुध पर से बृहस्पति का गोचर बुध की स्थितिानुसार फल देता है। यदि बुध पर किसी अन्य ग्रह का प्रभाव नहीं होता है तो परिणाम शुभ होते हैं। और व्यक्ति की प्रतिभा खुल कर सामने आती है। अपनी प्रतिभा के बल पर व्यक्ति धन भी कमाता है। यदि बुध पर ऎसे ग्रहों का प्रभाव हो जो बृहस्पति के मित्र हैं तब भी परिणाम शुभ होंगे। परन्तु बुध यदि ऎसे ग्रहों के प्रभाव में हों जो बृहस्पति के शत्रु हैं तो अशुभ परिणाम अधिक होंगे।

5. बृहस्पति:- जन्मकालीन बृहस्पति पर से बृहस्पति के गोचर के परिणाम जन्मपत्रिका में बृहस्पति की स्थिति के आधार पर होंगे। यदि जन्म पत्रिका में बृहस्पति 3,6,8,12 भाव में शत्रु अथवा नीच राशि में स्थित हों तो अशुभ परिणाम अधिक रहेंगे जैसे धन हानि, उच्चााधिकारियों का रोष, संतान से कष्ट आदि परंतु यदि जन्मपत्रिका में बृहस्पति की स्थिति शुीा हों तो इन विषयों में शुभ फल मिलेंगे।

6. शुक्र :- जन्मकालीन शुक्र से बृहस्पति के गोचर के परिणाम जन्मपत्रिका में शुक्र की स्थिति पर आधारित होंगे। यदि जन्म पत्रिका में शुक्र बलवान होकर 2,4,5,7,9 अथवा 12 भाव में स्थित हों तो परिणाम शुभ होंगे परन्तु अन्य भावों में स्थित शुक्र पर से बृहस्पति का गोचर अशुभ परिणाम देगा। ऎसी स्थिति में अपने आसपास के लोगों से शत्रुता बढ़ती है। पत्नी को कष्ट होता है तथा व्यापार में कष्ट का दौर रहता है।

7. शनि :- जन्मकालीन शनि से बृहस्पति का गोचर शनि की जन्मपत्रिका में स्थिति के आधार पर फल प्रदान करेगा। यदि शुभ शनि-1, 2, 3, 6, 7, 8, 10 अथवा 11वें भाव में होंगे तो भूमि संबंधी लाभ होंगे तथा मान में वृद्धि होगी अन्यथा गुरू का गोचर साधारण रहेगा और परिणाम नहीं मिलेंगे।

११. बृहस्पति शान्ति के उपायबृहस्पति शान्ति के उपाय :-

बृहस्पति के अशुभ होने की स्थिति मे, उदर रोग, यकृत रोग, मस्तिष्क रोग, फेफड़ो के रोग, आंतो के रोग, लम्बी अवधि का बुखार, रीड़ की हड्डी के रोग, कर्ण रोग, वायुयान दुर्घटना जैसी स्थितियां बनती हैं। शिक्षा मे अवरोध, विवाह मे विध्न बाधायें, धर्म-कर्म, पूजा पाठ मे मन ना लगना, वृद्धों का सम्मान नही करना जैसी परिस्थियां आने पर बृहस्पति को अशुभ मानना चाहिये।जन्मकालीन गुरु निर्बल होने के कारण अशुभ फल देने वाला हो तो निम्नलिखित उपाय करने से बलवान हो कर शुभ फल दायक हो जाता है 

रत्न धारण :-

पीत रंग का पुखराज सोने या चांदी की अंगूठी मेंपुनर्वसु ,विशाखा ,पूर्व भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर गुरुवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , पीले पुष्प, हल्दी ,अक्षत आदि से पूजन कर लें |पुखराज की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न सुनैला या पीला जरकन भी धारण कर सकते हैं | केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें .

दान व्रत ,जाप :-

बृहस्पतिवार का गुरूवार के नमक रहित व्रत करना चाहिये।

पुखराज, कांसा, सोना, चने की दाल, खांड, घी, पीला फूल, पीला कपड़ा, हल्दी, पुस्तक, घोड़ा, भूमि तथा पीले फल का दान करना चाहिये।

ऊँ ऐं क्लीं बृहस्पतये नमः का जप कम से कम 19000 बार अवष्य करना चाहिये।

गुरूवार को घी, हल्दी, चने की दाल ,बेसन पपीता ,पीत रंग का वस्त्र ,स्वर्ण, इत्यादि का दान करें |

बृहस्पतिवार की संध्या काल मे 05 से 06 रत्ती का पुखराज अथवा उपरत्न सुनहला, प्रतिष्ठित कराकर धारण करने से अशुभ बृहस्पति का प्रभाव कम होता है।

बृहस्पति जी वृद्धिदायक ग्रह है विद्या, सन्तान, धर्म आदि की वृद्धि के लिये बृहस्पति जी शुभ रहना अति अनिवार्य है।

ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः मन्त्र का जप भी 19000 की संख्या मे कर सकते हैं।

फलदार पेड़ सार्वजनिक स्थल पर लगाने से या ब्राह्मण विद्यार्थी को भोजन करा कर दक्षिणा देने से भी बृहस्पति प्रसन्न हो कर शुभ फल देते हैं |

पीपल में जल चढ़ाना। सत्य बोलना। आचरण को शुद्ध रखना। पिता, दादा और गुरु का आदर करना। गुरु बनाना। घर में धूप-दीप देना।

१२. बृहस्पति है रक्षक ग्रह :-

देवता - ब्रह्मा

दिशा - ईशान कोण

दिवस - बृहस्पतिवार

गोत्र - अंगिरा

पोशाक - पगड़ी

पशु - बब्बर शेर

वृक्ष - पीपल

पेशा - शिक्षा, सुनार

वास्तु - सोना, पुखराज

जाति - वर्ण - ब्राह्ण, पीत वर्ण

वाहन - ऐरावत (सफेद हाथी)

विशेषता - रहस्यमय ज्ञानी

स्वभाव - मौन एवं शांत क्षत्रिय पुरुष

बल-वृद्धि - मंगल के साथ होने से बलशाली

भ्रमण काल - एक राशि में 13 माह

नक्षत्र - पूर्वा विशाखा, पूर्वा भाद्रपद

गुण - हवा, रूह, साँस, पिता, गुरु और सुख।

शक्ति - हकीम, साँस लेने तथा दिलाने की शक्ति

शरीर के अंग - गर्दन, नाक, माथे या नाक का सिरा

राशि - धनु और मीन राशि के स्वामी गुरु के सू.म.च. मित्र, शु.बु. शत्रु, श.रा.के. सम।

अन्य नाम - देवमंत्री, देव पुरोहित, देवेज्य, इज्य, गुरु, सुराचार्य, जीव, अंगिरा और वाचस्पति सूरी।

मकान - सुहानी हवा के रास्ते। दरवाजा उत्तर-दक्षिण न होगा। हो सकता है कि पीपल का वृक्ष या कोई धर्मस्थान मकान के आसपास हो। ईशान या उत्तर का घर गुरु का घर कहलायेगा।