ज्योतिष शास्त्र में केतु

१. केतु :-

भारतीय ज्योतिष में उतरती लूनर मोड को दिया गया नाम है। केतु एक रूप में राहु नामक ग्रह के सिर का धड़ है। यह सिर समुद्र मन्थन के समय मोहिनी अवतार रूपी भगवान विष्णु ने काट दिया था। यह एक छाया ग्रह है। माना जाता है कि इसका मानव जीवन एवं पूरी सृष्टि पर अत्यधिक प्रभाव रहता है। कुछ मनुष्यों के लिये ये ग्रह ख्याति पाने का अत्यंत सहायक रहता है। केतु को प्रायः सिर पर कोई रत्न या तारा लिये हुए दिखाया जाता है, जिससे रहस्यमयी प्रकाश निकल रहा होता है।

२. केतु की स्थिति :-

भारतीय ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु, सूर्य एवं चंद्र के परिक्रमा पथों के आपस में काटने के दो बिन्दुओं के द्योतक हैं। सूर्य और चंद्र के ब्रह्मांड में चलने के अनुसार ही राहु और केतु की स्थिति भी बदलती रहती है। अंग्रेज़ी या यूरोपीय विज्ञान में राहू एवं केतु को को क्रमशः उत्तरी एवं दक्षिणी लूनर नोड कहते हैं। तभी ये तथ्य कि सूर्य या चंद्र जब इनमें से किसी एक बिन्दु/स्थिति पर उपस्थित होते हैं ग्रहण होता है, ये तथ्य इस कथा का जन्मदाता बना कि राहु या केतु ग्रहण के समय सूर्य या चंद्र को ग्रसित कर लेते हैं।

विभिन्न राशियों में स्थित केतु ग्रह का फल :- केतु के द्वादश राशियों में फल शास्त्रों में निम्नानुसार बताए गए हैं:

मेष राशि :- यदि जन्म कुंडली में केतु मेष राशि में स्थित हो,तो जातक अस्थिर स्वभाव का, अधिक बातें करने वाला एवं और सुखी होता है

वृषभ राशि :- यदि जन्म कुंडली में केतु वृषभ राशि में स्थित हो,तो जातक दु:खी, आलसी,अधिक बाते करने वाला और कामुक होता हैं

मिथुन राशि :- यदि जन्म कुंडली में केतु मिथुन राशि में स्थित हो,तो जातक वायु रोग से पीड़ित, अभिमानी,सरलता से सन्तुष्ट होने वाला, अल्पायु और छोटी-सी बात पर क्रोधित होने वाला होता हैं।

कर्क राशि :- यदि जन्म कुंडली में केतु कर्क राशि में स्थित हो,तो जातक दु:खी एवं भूत-प्रेत से डरने वाला होता हैं। 

सिंह राशि :- यदि जन्म कुंडली में केतु सिंह राशि में स्थित हो,तो जातक बातूनी,डरपोक,असंतोषी और सर्प के काटने का भय होता हैं

कन्या राशि :- जन्म कुंडली में केतु कन्या राशि में स्थित हो,तो जातक रोगी,मूर्ख एवं पाचन शक्ति खराब होती हैं। 

तुला राशि :- यह दिन जन्म कुंडली में केतु तुला राशि में स्थित हो,तो जातक कोढ़ से पीड़ित, कामुक,शीघ्र क्रोध वाला और दु:खी होता हैं

वृश्चिक राशि :- यदि जन्म कुंडली में केतु वृश्चिक राशि में स्थित हो,तो जातक क्रोधी,कोढ़ से पीड़ित, चतुर, बातूनी,धोखेबाज और गरीब होता हैं।

धनु राशि :- यदि जन्म कुंडली में केतु धनु राशि में स्थित हो,तो जातक असत्यवादी और धोखेबाज होता हैं।

मकर राशि :- यदि जन्म कुंडली में केतु मकर राशि में स्थित हो,तो जातक जन्म स्थान छोड़कर जाने वाला,परिश्रमी,साहसी और प्रसिद्ध होता हैं।

कुम्भ राशि :- यदि जन्म कुंडली में केतु कुंभ राशि में स्थित हो,तो जातक दु:खी, आवारा,अधिक खर्च करने वाला एवं सामान्य धनवान होता हैं।

मीन राशि :- यदि जन्म कुंडली में केतु मीन राशि में स्थित हो,तो जातक विदेश यात्रा करने वाला,आवेशपूर्ण,परिश्रमी,धार्मिक प्रवृत्ति वाला और अध्यात्म की ओर झुकाव वाला होता हैं।

३. केतु की स्थितिज्योतिष में :-

हिन्दू ज्योतिष में केतु अच्छी व बुरी आध्यात्मिकता एवं पराप्राकृतिक प्रभावों का कार्मिक संग्रह का द्योतक है। केतु विष्णु के मत्स्य अवतार से संबंधित है। केतु भावना भौतिकीकरण के शोधन के आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रतीक है और हानिकर और लाभदायक, दोनों ही ओर माना जाता है, क्योंकि ये जहां एक ओर दुःख एवं हानि देता है, वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति को देवता तक बना सकता है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर मोड़ने के लिये भौतिक हानि तक करा सकता है।

यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक है। माना जाता है कि केतु भक्त के परिवार को समृद्धि दिलाता है, सर्पदंश या अन्य रोगों के प्रभाव से हुए विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाता है। ये अपने भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य, धन-संपदा व पशु-संपदा दिलाता है। मनुष्य के शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष गणनाओं के लिए केतु को कुछ ज्योतिषी तटस्थ अथवा नपुंसक ग्रह मानते हैं जबकि कुछ अन्य इसे नर ग्रह मानते हैं। केतु स्वभाव से मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह हैं तथा मंगल के प्रतिनिधित्व में आने वाले कई क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व केतु भी करता है। यह ग्रह तीन नक्षत्रों का स्वामी है: अश्विनी, मघा एवं मूल नक्षत्र। यही केतु जन्म कुण्डली मेंराहु के साथ मिलकर कालसर्प योग की स्थिति बनाता है।

केतु के अधीन आने वाले जातक जीवन में अच्छी ऊंचाइयों पर पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश आध्यात्मिक ऊंचाईयों पर होते हैं। केतु की पत्नी सिंहिका और विप्रचित्ति में से एक के एक सौ एक पुत्र हुए जिनमें से राहू ज्येष्ठतम है एवं अन्य केतु ही कहलाते हैं।

४. कुण्डली में केतु :-

जातक की जन्म-कुण्डली में विभिन्न भावों में केतु की उपस्थिति भिन्न-भिन्न प्रभाव दिखाती हैं।

प्रथम भाव :- में अर्थात लग्न में केतु हो तो जातक चंचल, भीरू, दुराचारी होता है। इसके साथ ही यदि वृश्चिक राशि में हो तो सुखकारक, धनी एवं परिश्रमी होता है।

द्वितीय भाव :- में हो तो जातक राजभीरू एवं विरोधी होता है।

तृतीय भाव :- में केतु हो तो जातक चंचल, वात रोगी, व्यर्थवादी होता है।

चतुर्थ भाव :- में हो तो जातक चंचल, वाचाल, निरुत्साही होता है।

पंचम भाव :- में हो तो वह कुबुद्धि एवं वात रोगी होता है।

षष्टम भाव :- में हो तो जातक वात विकारी, झगड़ालु, मितव्ययी होता है।

सप्तम भाव :- में हो तो जातक मंदमति, शत्रुसे डरने वाला एवं सुखहीन होता है।

अष्टम भाव :- में हो तो वह दुर्बुद्धि, तेजहीन, स्त्रीद्वेषी एवं चालाक होता है।

नवम भाव :- में हो तो सुखभिलाषी, अपयशी होता है।

दशम भाव :- में हो तो पितृद्वेषी, भाग्यहीन होता है।

एकादश भाव :- में केतु हर प्रकार का लाभदायक होता है। एस प्रकार का जातक भाग्यवान, विद्वान, उत्तम गुणों वाला, तेजस्वी किन्तु उदर रोग से पीड़त रहता है।

द्वादश भाव :- में केतु हो तो जातक उच्च पद वाला, शत्रु पर विजय पाने वाला, बुद्धिमान, धोखा देने वाला तथा शक्की स्वभाव होता है।