ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह

१. मंगल ग्रह की उत्पत्ति का पौराणिक वृत्तांत :-

मंगल ग्रह की उत्पत्ति का एक पौराणिक वृत्तांत स्कंदपुराण के अवंतिका खण्ड में आता है | एक समय उज्जयिनी पुरी में अंधक नाम से प्रसिद्ध दैत्य राज्य करता था | उसके महापराक्रमी पुत्र का नाम कनक दानव था | एक बार उस महाशक्तिशाली वीर ने युद्ध के लिए इन्द्र को ललकारा तब इन्द्र ने क्रोधपूर्वक उसके साथ युद्ध करके उसे मार गिराया | उस दानव को मारकर वे अंधकासुर के भय से भगवान शंकर को ढूंढते हुए कैलाश पर्वत पर चले गये | इन्द्र ने भगवान चंद्रशेखर के दर्शन करके अपनी अवस्था उन्हें बतायी और प्रार्थना की, भगवन ! मुझे अंधकासुर से अभय दीजिये | इन्द्र का वचन सुनकर शरणागत वत्सल शिव ने इंद्र को अभय प्रदान किया और अंधकासुर को युद्ध के लिए ललकारा, युद्ध अत्यंत घमासान हुआ, और उस समय लड़ते – लड़ते भगवान शिव के मस्तक से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी, उससे अंगार के समान लाल अंग वाले भूमिपुत्र मंगल का जन्म हुआ |अंगारक , रक्ताक्ष तथा महादेव पुत्र, इन नामो से स्तुति कर ब्राह्मणों ने उन्हें ग्रहों के मध्य प्रतिष्ठित किया, तत्पश्चात उसी स्थान पर ब्रह्मा जी ने मंगलेश्वर नामक उत्तम शिवलिंग की स्थापना की | वर्तमान में यह स्थान मंगलनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, जो उज्जैन में स्थित है |

ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार वाराह कल्प में दैत्य राज हिरण्यकशिपू का भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा कर सागर में ले गया | भगवान् विष्णु ने वाराह अवतार ले कर हिरण्याक्ष का वध कर दिया तथा रसातल से पृथ्वी को निकाल कर सागर पर स्थापित कर दिया जिस पर परम पिता ब्रह्मा ने विश्व की रचना की | पृथ्वी सकाम रूप में आ कर श्री हरि की वंदना करने लगी जो वाराह रूप में थे | पृथ्वी के मनोहर सकाम रूप को देख कर श्री हरि ने काम के वशीभूत हो कर दिव्य वर्ष पर्यंत पृथ्वी के संग रति क्रीडा की | इसी संयोग के कारण कालान्तर में पृथ्वी के गर्भ से एक महातेजस्वी बालक का जन्म हुआ जिसे मंगल ग्रह के नाम से जाना जाता है |

२. ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह का स्वरूप एवम प्रकृति :-

ज्योतिष के मान्य फलित ग्रंथों बृहज्जातक ,सारावली , फलदीपिका ,बृहत् पाराशर इत्यादि के अनुसार मंगल क्रूर दृष्टि वाला ,युवक ,पतली कमर वाला ,अग्नि के सामान कान्ति वाला ,रक्त वर्ण ,पित्त प्रकृति का ,साहसी ,चंचल ,लाल नेत्रों वाला ,उदार ,अस्थिर स्वभाव का है |

३. मंगल की गति :-

गरुड़ पुराण के अनुसार भूमिपुत्र मंगल का रथ स्वर्ण के समान कांचन वर्ण का है | उसमें अरुण वर्ण के अग्नि से प्रादुर्भूत आठ अश्व जुते हुए हैं | मंगल मार्गी और वक्री दोनों गति से चलते हैं तथा बारह राशियों का भ्रमण लगभग अठारह महीने में कर लेते हैं|

४. वैज्ञानिक परिचय :-

सौर मंडल में मंगल का स्थान सूर्य से चौथा है |Iron oxide की अधिकता के कारण इस का रंग लाल प्रतीत होता है | रोमन युद्ध के देवता के नाम पर इसका नाम Mars रखा गया है | मंगल के दो चंद्रमा Phobos और Deimos हैं | इसका क्षेत्रफल पृथ्वी से लगभग आधा है | यह सूर्य की परिक्रमा 687 दिन में तथा अपनी धुरी पर 24 घंटे 39 मिनट 35.244 सैकिंड में करता है |

५. अंक शास्त्र में मंगल का अंक 9 :-

अंक 9 मंगल ग्रह का ध्योतक है. इस अंक का प्रभाव किसी भी माह की 9, 18, 27 तारिखों मे जन्मे व्यक्तियों पर अधिक होता है. 21 मार्च से 26 अप्रैल के मध्य का काल मंगल के कृपा का काल माना जाता है तथा 21 अक्टुबर से 27 नवम्बर तक का समय मंगल की क्रुर दृष्टि का काल माना जाता है. अंक 9 का प्रभाव उपरोक्त तिथि मे ज्यादा प्रभावशाली होता है.मंगल क्रोधी ग्रह है अत: इसे युद्ध का देवता कहते है.

६. विशेषतायें :-

आप चाहते हो कि घर के सभी लोग आपकी सेवा मे लगे रहे और आप घर के मुखिया बन कर रहना चाहते है.

अंक वाले लोग युद्धभुमि मे वीरगति को प्राप्त होते है या घायल होते है. इनका जीवन दुर्घटनाओ से पुर्ण होता है.

इसके कारण आपको किसी ना किसी अंग का चीड़ फाड़ करवाना पड़ता है.

आप क्रोधी स्वाभाव के है. आपको क्रोध शीघ्र आता है.

आप अपने कार्य मे किसी भी हस्तक्षेप को पसन्द नही करते है. उसमे पुर्ण नियंत्रण चाहते है. उपाय तथा साधन जुटाने मे आप कुशल है. आपमे संगठन शक्ति गजब की है.

आप किसी के अधीन काम करना नही चाहते है. आप जीवन को थोड़ा सा ही सही लेकिन चमकते हुये गुजारना चाहते है. आप अपने ग्रह के कारण योद्धा होना चाहते है.

इनका घरेलु जीवन लड़ाई- झगड़ो से भरा रहता है. ये अपने सम्बन्धियो अथवा पत्नी की तरफ से किसी अन्य से झगड़्ते रहते है. इसी कारण अपने सम्बन्धियो और परिवार वालो की तरफ से भी उग्र स्वाभाव के कारण सम्बन्ध अच्छे नही रहते है.

ये साहसिक कार्य करते हैं जिनके कारण इनको यश प्राप्त होता है. असभ्य प्रदेशो मे जाना या भयंकर जंगलो मे शिकार करना तथा मौत की वादी से गुजरना आपको अच्छा लगता है.

आपका विश्वास दुनिया को चकाचौंध करने मे होता है. इनमे अदम्य उत्साह होता है. इसी साहस के बल पे ये सर्कस घुड़दौड़ आदि मे ऐसे काम करते है जिंसे इनकी जान को खतरा रहता है.

आप अनुसाशनप्रिय है और अपने अधीन कार्य करने वाले लोगों का खुब ख्याल रखते है.किसी भी कठोर से कठोर कार्य को करने मे ये सक्षम है.

अत्यधिक गुस्से वाले, संवेदनशील, स्वतंत्र, तथा खुदमुख्तार होना इनकी प्रमुख विशेषता है.

ये उपरी तड़क भड़क या दिखावे को बहुत पसन्द करते है. शान से रहना चाहते है. इस वजह से इन्हे हानि भी उठानी पड़ती है.

सामन्य जन इनको कठोर हृदय का मानते है, परंतु प्रेम के मामले मे ये फूल के भाति कोमल होते है. कोई भी चतुर महिला इन्हे लम्बे समय तक मुर्ख बना सकती है.

ये अपनी आलोचना सहन नही कर पाते है. इनका मानना होता है कि ये जो भी करते है वही सही है. अपने सम्बन्ध मे इन्हे स्वयं की राय बहुत अच्छा लगती है.

अपने क्रोधी स्वाभाव के कारण ये अनेक शत्रु बना लेते है या कहें कि लोग शत्रु बन जाते है.

७. सावधानियां :-

आप बहुत ही सौभाग्यशाली हो सकते है.अगर आप नम्र बने रहें .

वाहन चलाते समय या सवारी करते समय सजगता बरतनी चाहिये.

उग्र स्वभाव के कारण आपका परिवार बिखरने लगता है. अत: इस पर भी ध्यान दें

आप ऐसे मित्र बनाये जो आपके गुस्से को शांत करने मे मदद करें .

दिखावे से बचें

आप साधारण बातो पे भी भड़क जाते है. किसी से भी उलझ जाते है. इससे बचें

मंगल की स्थिति को ध्यान मे रख कर निर्बल समय मे इन्हे विशेष रूप से शांत रहना चाहिये.

८. ज्योतिष शास्त्र में मंगल :-

ज्योतिष शास्त्र में मंगल को पाप ग्रह की श्रेणी में रखा गया है | राशि मंडल में इसे मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामित्व प्राप्त है | यह मकर राशि में उच्च का तथा कर्क में नीच का होता है | मेष राशि में 12 अंश तक मूल त्रिकोण का होता है | मंगल अपने स्थान से चौथे ,सातवें और आठवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है |सूर्य ,चन्द्र ,गुरु से मैत्री ,शुक्र व शनि से समता तथा बुध से शत्रुता रखता है | जनम कुंडली में तीसरे और छटे घर का स्वामी होता है | मंगल अपने वार ,स्व नवांश,स्व द्रेष्काण,स्व तथा उच्च राशि ,रात्रिकाल , वक्री होने पर ,दक्षिण दिशा में तथा जनम कुंडली के दशम भाव में बलवान होता है |

९. कारकत्व :-

मंगल भाई ,साहस ,पराक्रम ,आत्मविश्वास ,खेलकूद,शारीरिक बल ,रक्त मज्जा ,लाल रंग के पदार्थ ,ताम्बा ,सोना ,कृषि ,मिटटी ,भूमि ,मूंगा ,शस्त्र ,सेना, पुलिस,अग्नि ,क्रोध ,ईंट ,हिंसा ,मुकद्दमें बाजी , शल्य चिकित्सा ,बारूद , मदिरा , युद्ध , चोरी ,विद्युत , शत्रु ,तीखा और कड़वा रस ,सुनार आदि का कारक कहा गया है |

१०. रोग :-

जनम कुंडली में मंगल अस्त ,नीच या शत्रु राशि का ,छटे -आठवें -बारहवें भाव में स्थित हो ,पाप ग्रहों से युत या दृष्ट, षड्बल विहीन हो तो चेचक ,खसरा ,उच्च रक्त चाप ,खुजली ,फोड़ा फुंसी ,दुर्घटना ,जलन ,पित्त प्रकोप , बवासीर ,रक्त कुष्ठ , बिजली का करंट ,रक्त मज्जा की कमी ,मांसपेशियों की दुर्बलता इत्यादि रोगों से कष्ट हो सकता है |

११. फल देने का समय :-

मंगल अपना शुभाशुभ फल 28-32 वर्ष कि आयु में एवम अपनी दशाओं व गोचर में प्रदान करता है | युवा अवस्था पर भी इस का अधिकार कहा गया है|