जन्म कुंडली का अध्यन

१. जन्म कुंडली का परिचय :-

जन्म कुंडली को पढ़ने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखा जाता है. आइए सबसे पहले उन बातो को आपके सामने रखने का प्रयास करें. जन्मकुंडली बच्चे के जन्म के समय विशेष पर आकाश का एक नक्शा है.

जन्म कुंडली में एक समय विशेष पर ग्रहो की स्थिति तथा चाल का पता चलता है. जन्म कुंडली में बारह खाने बने होते हैं जिन्हें भाव कहा जाता है. जन्म कुण्डली अलग - अलग स्थानो पर अलग-अलग तरह से बनती है. जैसे भारतीय पद्धति तथा पाश्चात्य पद्धति. भारतीय पद्धति में भी उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय तथा पूर्वी भारत में बनी कुंडली भिन्न होती है.

जन्म कुंडली बनाने के लिए बारह राशियों का उपयोग होता है, जो मेष से मीन राशि तक होती हैं. बारह अलग भावों में बारह अलग-अलग राशियाँ आती है. एक भाव में एक राशि ही आती है. जन्म के समय भचक्र पर जो राशि उदय होती है वह कुंडली के पहले भाव में आती है.

अन्य राशियाँ फिर क्रम से विपरीत दिशा में चलती है. माना पहले भाव में मिथुन राशि आती है तो दूसरे भाव में कर्क राशि आएगी और इसी तरह से बाकी राशियाँ भी चलेगी. अंतिम और बारहवें भाव में वृष राशि आती है.

वक्री और मार्गी ग्रहों का जन्मकुंडली में महत्व :- जब मनुष्य जन्मपत्रिका बनवाता है,तो उस जन्मपत्रिका में ग्रहों के मार्गी एवं वक्री शब्दों का प्रयोग किया हुआ मिलता है। पंचागों में भी ग्रहों के मार्गी व वक्री होने का विवरण मिलता है।

वक्री का अर्थ :- होता है कि, जो ग्रह सीधे-सीधे चलते हुए अचानक पीछे की ओर चलने लग जाते है, उसे वक्री कहते है।

जन्मपत्रिका में जो ग्रह वक्री होता है, उसके नीचे क्रॉस का निशान लगा देते है। कम्प्यूटर द्वारा बनी हुई जन्मपत्रिका में वक्री ग्रह के आगे 'R' यानी 'O'Retrograde शब्द का प्रयोग करते है।

फलित ज्योतिष में वक्री ग्रह के सम्बन्ध में नहीं कोई मुख्यतौर से चर्चा नहीं मिलती है और नहीं कोई इस विषय पर स्वतंत्र ग्रन्थ का विवरण मिलता है।

लेकिन पञ्चाङ्ग को बनाने वालों ने ग्रह को वक्री मानकर वक्री संकेतों का उपयोग किया है। अब प्रश्न यह है कि कोई ग्रह वक्री भी हो सकता है?

क्योंकि सभी ग्रह अपनी कक्षा में स्थित होकर सूर्य के चारों ओर चक्र को पूरा करते है। सूर्य को छोडकर किसी भी ग्रह का घूमने का काल एक समान नहीं होता और न ही उनकी गति एक जैसी होती है।

पञ्चाङ्ग के अंदर सभी ग्रहों की गति का विवरण मिल जाता है। यदि तेज गति से चलते हुए वाहन को एकदम ब्रेक लगाते है तो घर्षण के द्वारा जोर की आवाज आवेगी और दुर्घटना हो सकती है। ग्रहों की गति बहुत तेज होती है, यदि वह अचानक रुककर पीछे की ओर चलने लगे तो उसी समय समस्त सृष्टि ही प्रभावित होने लगती है।

ज्योतिषी लोग पंचागों व तंत्रियों में लिखते है कि अमुक ग्रह अमुक तारीख को वक्री होगा और अमुक तारीख को मार्गी होगा।

मार्गी का अर्थ :- होता है कि ग्रह का सीधा चलता रहना।

हमारे ऋषियों ने जब ग्रहों का अध्ययन किया होगा ,तो कई ग्रह पीछे की ओर जाते दिखाई दिए होंगे। आज भी अगर वेद यन्त्रों से हम ग्रहों को देखते है तो कई ग्रह पीछे की ओर जाते दिखाई देते है और इसी तरह से हम यह मान लेते है कि अमुक ग्रह वक्री हो गया।ऐसा दिखाई देना केवल हमारा दृष्टि भ्रम होता है। उदाहरण के लिए जब हम रेलगाड़ी से यात्रा करते हुए खिड़की से बाहर देखते हैं तो हमें पेड़ पौधे व अन्य वस्तुएं पीछे की ओर जाती हुई दिखाई देती हैं। इसी तरह जब प्लेटफार्म पर रुकी हुई रेलगाड़ी के डिब्बे में बैठे होते है और उसी समय समानान्तर पटरी पर कोई दूसरी रेलगाड़ी आती दिखाई देती है और जब हम खिड़की में से देखते है तो हमें हमारी ट्रेन चलती हुई दिखाई देती है, जबकि हमारी ट्रेन तो रुकी हुई होती है, इस तरह दिखाई देना केवल हमारा दृष्टि भ्रम ही होता है।

वास्तव में होता यह है कि जब पृथ्वी की गति अपनी धुरी पर अपने समान्तर चलने वाले ग्रह से तेज होती है, तब हमें समान्तर चलने वाला ग्रह पीछे की ओर जाता हुआ दिखाई पड़ता है और कह देते है कि अमुक ग्रह वक्री हो गया, किन्तु व्यवहारिक तौर पर ग्रह कभी विपरीत नहीं चलते है।

जब हम किसी ग्रह को वक्री कहते है, तब वास्तव में उस ग्रह की पृथ्वी की गति से तुलना में मन्द गति होने की सूचना देती है और उस स्थिति में उस ग्रह विशेष की ताकत कुछ कम मानी जाती है।

सूर्य और चन्द्रमा कभी वक्री नहीं होते है, क्योंकि इनकी गति हमेशा पृथ्वी की गति से तेज रहती है। बाकी सभी ग्रहों की चाल में बदलाव होता रहता है जिसके कारण से बाकी ग्रह कभी वक्री और कभी मार्गी होते रहते है।

वक्री ग्रह का जन्मपत्रिका में बहुत ही महत्व होता है व फलादेश में भी काफी बदलाव आ जाते है।

वास्तव में कोई ग्रह न तो कभी वक्री होता है न मार्गी होता है, यह सब उस ग्रह का चारों तरफ घूमने की चाल में बदलाव आने के कारण दिखाई देता है, उसी के आधार पर उनकी उपरोक्त व्याख्या कर दी जाती है।

जब मनुष्य या जीव-जन्तु अपनी सामान्य स्वभाव के अनुसार आचरण करते हुए अचानक असामान्य दशा में बदलाव किसी तरह से होता है तो उसके प्राकृतिक व्यवहार व आचरण आदि में परिवर्तन आ जाता है।

इसी तरह जब कोई ग्रह अपनी सामान्य गति से मन्द या तेज गति में होता है तो पृथ्वीवासियों पर इसका प्रभाव पड़ता है। इसलिए किसी ग्रह के वक्री होने पर ग्रह की सामान्य प्रकृति के अनुसार प्रभाव न पड़कर असामान्य प्रभाव पड़ता है, जिससे उसकी क्रियाएं भी असामान्य हो जाती है।

यह हम सब जानते है कि पृथ्वी पर मौसम में बदलाव होता रहता है। कभी गर्मी,कभी सर्दी,कभी बसन्त एवं कभी वर्षा होती है। यह सब बदलाव सूर्य के उत्तरायण व दक्षिणायन में होने पर होता है। पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्य, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी एवं समस्त वनस्पति मौसम के बदलाव से प्रभावित होते रहते है। अतः फलित करते समय गोचर ग्रहों की प्रकृति एवं वक्री ग्रहों की प्रकृति को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।

२. भाव का परिचय :-

जन्म कुंडली में भाव क्या होते हैं आइए उन्हेँ जानने का प्रयास करें. जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं और हर भाव में एक राशि होती है. कुँडली के सभी भाव जीवन के किसी ना किसी क्षेत्र से संबंधित होते हैं. इन भावों के शास्त्रो में जो नाम दिए गए हैं वैसे ही इनका काम भी होता है. पहला भाव तन, दूसरा धन, तीसरा सहोदर, चतुर्थ मातृ, पंचम पुत्र, छठा अरि, सप्तम रिपु, आठवाँ आयु, नवम धर्म, दशम कर्म, एकादश आय तो द्वादश व्यय भाव कहलाता है

सभी बारह भावों को भिन्न काम मिले होते हैं. कुछ भाव अच्छे तो कुछ भाव बुरे भी होते हैं. जिस भाव में जो राशि होती है उसका स्वामी उस भाव का भावेश कहलाता है. हर भाव में भिन्न राशि आती है लेकिन हर भाव का कारक निश्चित होता है.

बुरे भाव के स्वामी अच्छे भावों से संबंध बनाए तो अशुभ होते हैं और यह शुभ भावों को खराब भी कर देते हैं. अच्छे भाव के स्वामी अच्छे भाव से संबंध बनाए तो शुभ माने जाते हैं और व्यक्ति को जीवन में बहुत कुछ देने की क्षमता रखते हैं. किसी भाव के स्वामी का अपने भाव से पीछे जाना अच्छा नहीं होता है, इससे भाव के गुणो का ह्रास होता है. भाव स्वामी का अपने भाव से आगे जाना अच्छा होता है. इससे भाव के गुणो में वृद्धि होती है.

३. ग्रहो की स्थिति :-

जन्म कुंडली मैं सबसे आवश्यक ग्रहों की स्थिति है, आइए उसे जाने़. ग्रह स्थिति का अध्ययन करना जन्म कुंडली का बहुत महत्वपूर्ण पहलू है. इनके अध्ययन के बिना कुंडली का कोई आधार ही नहीं है.

पहले यह देखें कि किस भाव में कौन सा ग्रह गया है, उसे नोट कर लें. फिर देखें कि ग्रह जिस राशि में स्थित है उसके साथ ग्रह का कैसा व्यवहार है. जन्म कुंडली में ग्रह मित्र राशि में है या शत्रु राशि में स्थित है, यह एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है इसे नोट करें. ग्रह उच्च, नीच, मूल त्रिकोण या स्वराशि में है, यह देखें और नोट करें.

जन्म कुंडली के अन्य कौन से ग्रहों से संबंध बन रहे है इसे भी देखें. जिनसे ग्रह का संबंध बन रहा है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, यह जांचे. जन्म कुंडली में ग्रह किसी तरह के योग में शामिल है या नहीं, जैसे राजयोग, धनयोग, अरिष्ट योग आदि अन्य बहुत से योग हैं.

४. कुंडली का फलकथन :-

फलकथन की चर्चा करते हैं, भाव तथा ग्रह के अध्ययन के बाद जन्म् कुंडली के फलित करने का प्रयास करें. पहले भाव से लेकर बारहवें भाव तक के फलों को देखें कि कौन सा भाव क्या देने में सक्षम है.

कौन सा भाव क्या देता है और वह कब अपना फल देगा यह जानने का प्रयास गौर से करें. भाव, भावेश तथा कारक तीनो की कुंडली में स्थिति का अवलोकन करना आवश्यक होता है. जन्म कुंडली में तीनो बली हैं तो जीवन में चीजें बहुत अच्छी होगी.

तीन में से दो बली हैं तब कुछ कम मिलने की संभावना बनती है लेकिन फिर भी अच्छी होगी. यदि तीनो ही कमजोर हैं तब शुभ फल नहीं मिलते हैं और परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

५. दशा का अध्ययन :-

अभी तक बताई सभी बातों के बाद दशा की भूमिका आती है, बिना अनुकूल दशा कै कुछ् नहीं मिलता है. आइए इसे समझने का प्रयास करें. सबसे पहले यह देखें कि जन्म कुंडली में किस ग्रह की दशा चल रही है और वह ग्रह किसी तरह का कोई योग तो नहीं बना रहा है.

जिस ग्रह की दशा चल रही है वह किस भाव का स्वामी है और कहाँ स्थित है, यह जांचे. कुंडली में महादशा नाथ और अन्तर्दशानाथ आपस में मित्रता का भाव रखते है या शत्रुता का भाव रखते हैं यह देखें.

कुंडली के अध्ययन के समय महादशानाथ से अन्तर्दशानाथ किस भाव में स्थित है अर्थात जिस भाव में महादशानाथ स्थित है उससे कितने भाव अन्तर्दशानाथ स्थित है, यह देखें. महादशानाथ बली है या निर्बल है इसे देखें. महादशानाथ का जन्म और नवांश कुंडली दोनो में अध्ययन करें कि दोनो में ही बली है या एक मे बली तो दूसरे में निर्बल तो नहीं है यह देखें.

६. गोचर का अध्ययन :-

सभी बातो के बाद आइए अब ग्रहो के गोचर की बात करें. दशा के अध्ययन के साथ गोचर महत्वपूर्ण होता है. कुंडली की अनुकूल दशा के साथ ग्रहों का अनुकूल गोचर भी आवश्यक है तभी शुभ फल मिलते हैं.

किसी भी महत्वपूर्ण घटना के लिए शनि तथा गुरु का दोहरा गोचर जरुरी है. जन्म कुंडली में यदि दशा नहीं होगी और गोचर होगा तो अनुकूल फलों की प्राप्ति नहीं होती है क्योकि अकेला गोचर किसी तरह का फल देने में सक्षम नहीं होता है.